Friday, August 22, 2008

सपने

जिंदगी रुक गई है
अजीब ठहराव है
भावनाओ का जमाव है
बीतते जा रहे हैं पल,पल पल
गुजरते जा रहे हैं दिन,दिन-ब-दिन;

सपने, यही हैं हमारे साथ
रोज इनका चाँद से आगे निकल जाना
और सुबह ज़मीन से टकरा जाना,
किरचों में बिखर जाना
फलक पर छाने के सपने
कुछ पाने के सपने
सपनो को हकीकत में बदलने के सपने
और कभी, सपनो को टूटता दिखाते
बेगाने से सपने……….

हाँ सपने….मेरे सपने….
अनगिनत बावले से सपने !!!

(Written when in 10th)

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