Friday, August 22, 2008

अपने अपने अजनबी

सागर की लहरों में खुश थे बहुत हम
साहिल की उमंगो में कितने थे महफूज़ हम
मौजो की मस्ती में हम भी मगन थे
मुट्ठी में मेरे चाँद सितारे,ज़मी और गगन थे

कुछ दिन पहले ज़िन्दगी कितनी नरम थी
हर घड़ी तरंग हर पल नयी उमंग थी
साथ थी तुम दूर थे कई गम
चुभते नासूरों पर लगा था कुक मरहम

हर अजनबी भी हमसाया लगता था
तुम गए अब अपना साया भी पराया लगता है
हर दस्तक पर कोई आया लगता था
मुझ पे सभी को किस्मत ने भी hasaaya लगता है

हर पल तुम को खोया है
पल पल में तुम्ही को पाया है
जब हंसी तुम्हारे ख्याल पे हंसी
जब आँखों में नमी आई,तुम्ही ने रुलाया है

न हो तुम हर तरफ़ तुम्हारा ही नज़ारा है
तुम्हारी मुस्कान ही muskaane का सहारा है
मेरे पास तुम्हारी यादों का आशियाना है
तुम्हारा अक्स अश्कों को सुखाने का बहाना है

तुम्हारी वो शरारत,वो हिमाकत सब याद है
हर रोज हर वक्त एक ख्वाहिश एक फरियाद है
वो मासूम सी हंसी नूर-ऐ-आफताब है
खुशियाँ जो तुने दी,तोहफा ये नायाब है

हमारा वो लड़ना वो झगड़ना सब याद है मुझे
लफ्फाजी जंग के बाद दोस्ती की फरियाद भी याद है
शरारत हिमाकत नजाकत अदावत सब शामिल हैं
कैसी बूँद,कैसी दरिया,कैसा सागर,कैसा साहिल है

कैसी दोस्ती,कैसा रिश्ता,कैसी कमनसीबी है
बहुत ही अजीज कुछ लोगों को अपने-अपने अजनबी हैं……..

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