Monday, August 25, 2008

बाढ़ bihaar

आशियाना तो हमने भी बनाया था
पर बहने के लिए
चमन तो हमने भी खिलाया था
मगर उजड़ने के लिए
वो आते हैं हवा में पानी देखने के लिए
थकी आंखों से देखते हैं हम उन्हें
भीख की ज़िन्दगी के लिए

पानी में डूबा है मन तो याद आता है
पिछले बरस,बरस दर बरस
घनघोर बह के आता है पानी
संग सैलाब के हमें बहाने के लिए

दर्द के अनगिनत छींटें हैं ज़िन्दगी की चादर पर
मैले आँचल tale पलती है ज़िन्दगी उधार पे
माजी की मर्ज़ी से मजबूर
तकदीर की पतली डोर
किस्मत को हम ही मिले थे
अपना हाथ आजमाने के लिए
तड़पते हैं हम एक मजबूत आशियाने के लिए
शायद आती है बहार हमे जलने के लिए.

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