आशियाना तो हमने भी बनाया था
पर बहने के लिए
चमन तो हमने भी खिलाया था
मगर उजड़ने के लिए
वो आते हैं हवा में पानी देखने के लिए
थकी आंखों से देखते हैं हम उन्हें
भीख की ज़िन्दगी के लिए
पानी में डूबा है मन तो याद आता है
पिछले बरस,बरस दर बरस
घनघोर बह के आता है पानी
संग सैलाब के हमें बहाने के लिए
दर्द के अनगिनत छींटें हैं ज़िन्दगी की चादर पर
मैले आँचल tale पलती है ज़िन्दगी उधार पे
माजी की मर्ज़ी से मजबूर
तकदीर की पतली डोर
किस्मत को हम ही मिले थे
अपना हाथ आजमाने के लिए
तड़पते हैं हम एक मजबूत आशियाने के लिए
शायद आती है बहार हमे जलने के लिए.
Monday, August 25, 2008
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